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Thursday, May 30, 2019

गर्भनाल भाग – 8 औरंगाबादमें स्वागत

गर्भनाल भाग 8 औरंगाबादमें स्वागत
(गर्भनाल लिंक)
IAS में चुने जानेवालोंके लिये दो वर्षोंकी ट्रेनिंगकी योजना यूँ होती है कि पहले एक वर्षका ट्रेनिंग मसूरीकी लालबहादुर शास्त्री नॅशनल अकादमी ऑफ अॅडमिनिस्ट्रेशनमें। फिर नौ महीने अपने अपने काडरके किसी जिलेमें औऱ आखिरी तीन महीने फिर एकबार मसूरी अकादमीमें। इसके बाद ही नौकरीमें कन्फर्मेशन होता है और असिस्टंट कलेक्टरकी पहली पोस्टिंग दी जाती है।
तो मसूरीसे अपने काडर महाराष्ट्रमें आनेपर सर्व प्रथम मुंबईकी प्रशासकीय ट्रेनिंग संस्थाका दो सप्ताहका छोटासा ट्रेनिंग पूरा हुआ। इसका उद्देश्य था कि नई बॅचके सभीको महाराष्ट्रके विषयमें थोडा बहुत समझने का समय मिले। हम ग्यारह अधिकारी थे जिनमेंसे तीनने बादमें यह नौकरी ही छोड दी और एकने काडर बदल लिया। इस प्रकार निवृत्ति आते आते हम सात अधिकारी ही बचे रहे।
मुझे नियुक्ती आदेश मिला कि जिला ट्रेनिंगके लिये मुझे औरंगाबाद जाना है। वहाँ रेल कनेक्शन नही था। बससे जाना होगा। कई महीने रहना है तो संसार बसानेलायक सामान चाहिये। संसार चलानेका मेरा अनुभव बस दो महीनोंका था, जब शादीके बाद प्रकाशके साथ कोलकाता रही थी। लेकिन वहाँ भी सब कुछ प्रकाशका पहलेसे बसा – बसाया था। नया बसाना हो तो क्या करते हैं ?
शामको मेरे ससुरजीने किचनके लिये लगनेवाले कमसे कम सामानकी सूची बना ली और हम दोनों शॉपिग कर आये। मसूरीसे चला आ रहा होल्डॉल साथ था। उसमें सासुजीने ओढने – बिछौनेके साथ थोडा आटा चावल, चायका सामान और मसाले रखवा दिये थे। और क्या क्या खरीदें इसका चर्चा होने लगी।
लेकिन अगली सुबह एक तार आया। भेजने वालेका नाम बी. टी. तुळजापुरकर ( नितान्त अपरिचित), फ्रॉम – औरंगाबाद । विस्तारसे भेजा गया तार था। औरंगाबादमें आपका स्वागत है, मैं यहाँ जिलाधिकारी कार्यालयसे रिसेप्शन आँफिसर हूँ। आपको अमुक दिन ज्वाइन होना है, तो उससे पिछली संध्याको मुंबई सेंट्रलसे चलने वाली बसमें रिजर्वेशन करवाइये। सुबह ८ बजे मैं आपको बस अड्डेपर लेने आ जाऊँगा। यहाँ आपको रहनेके लिये सरकारी घर दिया जायगा जिसमें थोडा फर्निचर भी होगा। अपने साथ सामान कम ही लाना – बाकी व्यवस्था यहाँ आनेपर हो जायेगी।
मैं कह नही सकती कि वह तार कितना आश्वासक था। अगली पूरी सर्विसतक श्री. तुळजापूरकर मेरे अच्छे सहकर्मी बने रहे। वे मूलतः हैद्राबाद से थे। मराठी, हिंदीके साथ तेलगू, ऊर्दू और फारसीके अच्छे जानकार थे। और बेहद तहजीब और अदब वाले। जिलेमें मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आये तो भी व्यवस्थापन रिसेप्शन ऑफिसरका या मेरे जैसा एकदम जूनियर प्रशिक्षणार्थी आये तब भी उन्हींका। और दोनोंको वह एक जैसी कर्मठतासे निभाते थे।
मेरी हिंदी व ऊर्दूपर पकड है, यह जानकर वे खुश हुए। कहने लगे – ये पूरा मराठवाडा ( सात जिले) कभी हैद्राबाद निजामके शासनमें था। इसे निजामशाहीसे मुक्त करानेके लिये बहुत आंदोलन हुए हैं। उन दिनों हैद्राबादसे आये रजाकरोंने यहाँ बहुत अत्याचार भी किये। लेकिन यहाँके स्थानीय मुस्लिम नेक दिल और सज्जन मिलेंगे। आपको उनकी जुबान आती है, इसका अच्छा लाभ होगा। रास्तेमें इतनी बातें होते होते हम सरकारी सुभेदारी गेस्टहाऊस पहुँच गये। एक कमरेमें सामान रखवाया – जब तक घर अलॉट न हो जाय, आपको यहाँ रहना है। अब आप जल्दीसे नहा धो लें, कलेक्टर साहबने नाश्तेके लिये आपको उनके घर ले आनेको कहा है। वहींसे आपको ऑफिस भी जाना है।
मैं हैरान थी। क्या यह आतिथ्यशीलता औरंगाबादकी हवाओंमें बसी हुई है? थोडी देरमें मुझे श्री भागवतके घर छोडकर तुळजापुरकरजी चले गये। किसी कलेक्टरसे मेरी पहली भेंट थी और सच तो यह कि कलेक्टर नामक वस्तू क्या होती है यह भी ठीकसे पता नही था। भागवतजी सर्विसमें मुझसे तेरह वर्ष सीनीयर थे। उनके दो छोटे बच्चे और मैं नाश्तेके टेबलपर बैठे। उन्होंने कहा- जबतक घर अलॉट नही होता- तुम्हारा, नाश्ता, लंच, डिनर, सब यहाँ होगा। मैं कभी टूरके लिये बाहर भी जाऊँ तो संकोच मत करना। अभी मेरी पत्नी बडे बेटेके संग मायके गई है, पंद्रह दिनमें आनेवाली है। उसे अच्छा नही लगेगा यदि तुमने गेस्ट हाऊस में खाना खाया। आखिर IAS फ्रॅटर्निटी भी कोई चीज होती है।
नाश्तेमें आम आये। भागवतजी बताने लगे यहाँके आम मैं बडे चावसे खाता हूँ। हैद्राबाद निजामका शाहबाग है, उसमें बीस-पच्चीस किस्मके आम हैं, तुम देख आना।
कलेक्टर कचहरी जाकर ज्वाइनिंग रिपोर्ट आदि पूरे किये तब तक मेरेसे तीन वर्ष सीनीयर श्रीमति चारूशीला सोहोनी आ गईं जो कमिशनर कार्यालयमें सप्लाय डिपार्टमेंटकी विभागप्रमुख थी। उन दिनों राशन व्यवस्था अपनी चरमपर थी। इमर्जेन्सीका दौर चल रहा था। दूध, राशन, चीनी, केरोसिन और गॅस सारा कुछ राशनपर ही होता था। चारूजीने मुझे उनके कार्यालय ले जाकर मेरा राशन कार्ड, गॅस कार्ड बनवाया। फिर विभागीय कमिशनर श्री द्वारकानाथ कपूरसे भेंट कराई और कहा- सर, वो अमुक अमुक घर खाली है, इसके नामका ऑर्डर निकलवा दें, तो अगली अलॉटमेंट कमिटी मीटींगमें मैं पोस्ट-फॅक्टो अप्रूवल ले लूँगी। कमिशनर मे सहमति जताई - आदेश निकलवा दो। अर्थात् कमिशनर, कलेक्टरसे लेकर सभीने यह ध्यान रखा कि नौकरीमें और जिलेमें भी नई आई इस ट्रेनी अफसरको कोई असुविधा न हो। मेरा कुछ ऐसा सौभाग्य रहा कि हर नई जगह पोस्टिंग होनेपर वहाँ कोई न कोई ध्यान रखनेवाला मिल ही गया। मुझे भी इस पहली पोस्टिंगमें एक अच्छी सीख मिल गई कि मेरेसे ज्यूनीयर कोई अफसर हो तो उसकी कुछ जिम्मेदारी मुझपर है।
IAS प्रशिक्षणार्थीको जिलेके प्रत्येक सरकारी विभागसे अवगत करानेका साथ ही लॉ एण्ड ऑर्डर, प्राकृतिक आपदा, वीआयपी विजिट जैसे बडे प्रसंगके लिये उसे तैयार कराने जिम्मा कलेक्टरका था। दौरे पर उन्हींकी कारमें साथ जानेका परिणाम यह होता कि सरकारी योजनाएँ, नीतियाँ, भला- बुरा, हर मुद्देपर चर्चा भी होती थी। जिलेके पूरे भूगोलसे भी परिचय हो जाता था।
मेरे लिये भी पहले ही दिन डयूटी ज्वाइनिंगकी रिपोर्ट भरना, कमिश्नर ऑफिसका चक्कर लगाना इत्यादि कार्यवाही पूरी हुई। शामको भागवतजीने वहाँके जिला पुलिस अधीक्षक श्री अनामि रायसे भी मिलवाया। उनके घरसे डिनर किया और उनकी कम्पाऊंड वॉलसे सटे सुभेदारी गेस्ट हाऊसमें अपने कमरेमें वापस आई।
अगली भोर। सुबहका उजाला अभी नही हुआ था। लेकिन दो बातें वातावरणको चहूँ ओरसे पूरित कर रही थीं। कई कोयलोंका एक साथ, एक दूसरेसे होड लेते हुए कूजन और एक भीनी सुगंध। मैं तडाकसे उठ बैठी। इस सुगंधको तो मैं जानती हूँ, लेकिन अभी स्मृतिमें नही आ रहा। कौनसा फूल है? आखिर बाहर आई तो देखा पाँच छः नीमके पेड डोल रहे थे। उनके छोटे छोटे श्वेत फूल मँह मँह महक रहे थे। वही नीम जिसके नीचे सोकर मैंने धरणगांवके बचपनके सात वर्ष गुजारे थे। बिहार जानेके बाद वहाँ ये पेड आसपासमें कहीं नही थे। गर्मियोंमें जब हम धरणगांव आते तबतक नीमके फूलोंकी ऋतु बीत चुकी होती थी। सो आज कई वर्षों पश्चात् यह नीमसुगंध मेरे हिस्से आई थी। इसके बाद तो औरंगाबादकी अगली हर भोर सुगंधित रही।
भागवतजीसे मैंने काफी कुछ सीखा जो मैं भूल नही सकती। एक निहायत सज्जन, संवेदनशील व्यक्तित्व क्या होता है – मानों कोई कपट उसे छू ही ना सके, ऐसा मुझे लगा। एक दिन भागवतजी मुझे और चारूको कोई फिल्म दिखाने ले गये - बाकायदा लाईनमें लगकर, टिकट कटाकर। कहने लगे कभी कभी कलेक्टरीका चोला छोडकर आम नागरिक बने रहनेका मजा कुछ और है। एक छोटासा लडका चवन्नी दे दो कहता हुआ आया तो मैंने उसे घुडक दिया - स्कूल क्यों नही जाते, भीख क्यों माँगते हो? वह लडका चला गया और मैंने देखा कि भागवतजीने जेबमें हाथ डालकर कुछ पैसे निकाल रखे थे, लेकिन मेरी बातका मान रखनेके लिये वापस जेबमें डाल दिये थे। फिर मुझसे कहा- तुमने ग्रामीण इलाके अवश्य देखे हैं, लेकिन शहरोंकी गरीबी नही देखी। गांवमें पेटके लिये फिर भी कुछ मिल जाता है लेकिन शहर बडे ही क्रूर होते हैं। बादमें कई बार मैंने उनके इस वाक्यका स्मरण किया है।
एक दिन मैं किसी दूसरे कार्यालयमें थी कि भागवतजीके पीएका फोन आया। आज शहरके उद्योगपतियोंने शामको डिनर रखा है। आप साडेसात तक कलेक्टर सरके घर पर आ जाना। मैं गई। मिसेस भागवत नही जानेवाली थीं। हम दोनों डिनर स्थली अर्थात एक होटेलमें पहुँचे। वहाँ जमे उद्योपतियोंने हम दोनोंका स्वागत किया। मेरा परिचय कराया गया-- अपने जिलेकी नई IAS प्रशिक्षणार्थी इत्यादि। हमारे लिये फ्रुट जूस भी आ गया। और अगले पांच मिनटोंमें मैंने पाया कि प्रायः हर कोई चेहरेपर अजीबसा तनाव लिये कानाफूसी कर रहा था। पांच मिनट और बीत गये। अब भागवत साहब खडे हो गये और कहा साथियों, मैं आप सबसे क्षमा चाहता हूँ और मिसेज मेहेंदलेसे भी। मैं दिनभर दौरे पर था । रूटिन निर्देशके मुताबिक मेरे पीएने इन्हें मेरे साथ आनेको कह दिया क्योंकि ऐसी पार्टीयाँ भी प्रशिक्षणका एक हिस्सा है। मुझे ध्यान नही रहा कि आजका डिनर एक स्टॅग पार्टीके रूपमें आयोजित है।लेकिन चूँकि ये महिला हैंं औौर ड्रिंक्स नही लेती तो आजकी पार्टीमें ड्रिंक्सं नही होंगे। सभीने इसका अनुमोदन किया और बातको आई गई कर सबने डिनरका आनंद उठाया। यह भागवतजीकी लोकप्रियता और कर्तव्यके प्रति सजगताका ही फल था कि इतनी सरलतासे पूरा बदलाव स्वीकार्य हो गया। ऐसे ही एक अन्य प्रसंगमें उन्हें वक्फ बोर्डके अध्यक्षके रूपमें इन्स्पेक्शन करना था। उन दिनों वक्फ बोर्डमें कलेक्टरही पदसिद्ध अध्यक्ष होते थे। मैं भी साथ थी। हम दोनों और साथ आये दो तीन अधिकारियोंने इन्स्पेक्शन पूरा किया। एक वृद्ध मौलाना मुझसे कहने लगे – वैसे तो इस इबादतगाहमें महिलाएँ नही आ सकतीं, लेकिन आप तो हकीम बनकर आई हैं। क्या पता, कल आप यहाँ कलेक्टर लग जाओ, तो वक्फ बोर्डकी अध्यक्ष भी बनेंगी। इसीसे हमने कोई रोकटोक नही की है। मौलानाने यह कहा तो अवश्य, लेकिन बादमें जब अंतुले महाराष्ट्रके मुख्यमंत्री बने तबसे वक्फ बोर्डके अध्यक्षकी नियुक्ति सरकार अपने मन मुताबिक करने लगी।
हमारे कमिशनर श्री कपूर बडे ही अनुभवी और फादर फिगर थे। पहले दिन उनसे केवल नमस्कार आदि ही हुए थे। बादमें एक दिन मुलाकातमें मेरी पूरी जानकारी ली। फिर सोचमें पड गये। मुझसे पूछा – तुम यहाँ महाराष्ट्रमें– और तुम्हारे पति कोलकातामें – यह कैसे चलेगा? मैंने कहा –सर, उनकी फिलिप्स कंपनीने पुणेमें ट्रान्स्फर करनेका वादा किया था – एक दो माहमे हो जायेगा। वे कुछ देर और सोचते रहे। फिर शायद निर्णय पर पहुँचे कि प्रशासनकी सुविधासे पहले प्रशिक्षणार्थीकी सुविधा देखनी चाहिये। मुझसे कहा – देखो, तुम्हारा प्रोबेशन औरंगाबाद डिविजनमें लगा है, तो नियमानुसार तुम्हारी असिस्टंट कलेक्टरकी दो वर्षकी पोस्टिंग भी इसी डिविजनमें करनी पडेगी। ऐसे तो तुम्हारा वैवाहिक जीवन ठीकसे आंरभ भी न हो पायेगा। ऐसा करो, पुणे डिविजनमें अपनी ट्रान्स्फरके लिये अर्जी दे दो। एक सप्ताहमें मुख्य सचिव यहाँ आनेवाले हैं। उनसे मिलकर बताओ। पुणे डिविजनमें रहोगी तो कमसे कम अगले तीन वर्ष तुम दोनों साथ रह पाओगे। बादमें बीच बीचमें पूणेसे बाहर पोस्टिंग करनी ही पडेगी लेकिन आरंभ तो अच्छा हो जाय।
वैसा ही हुआ। साठेजी आये तो मैं मिली। अपने पक्षमें मैंने और एक बात रखी। पुणेमें अभी प्रोबेशनर सुषमा शर्मा है लेकिन जल्दीही उसका ब्याह होना है मध्यप्रदेश काडरके सुधीरसे। ऑक्टोबरमें शादी होगी और नियमानुसार वह उस काडरमें चली जायेगी। तो अभी चार छः माहके लिये उसे कोई अन्तर नही पडता कि वह पुणेमें काम करे या औरंगाबादमें। लेकिन मेरे अगले तीन वर्षोंके लिये बडा अन्तर पडता है।
साठेजीने कहा – ये तर्क मुझे पसंद है। वरना सुषमाको असुविधामें डालकर तुम्हारी सुविधाका ध्यान रखना मेरे लिये मुश्किल हो जाता। अब तुम पुणे जानेकी तैयारी करो। ऑर्डर आ जायेंगे। इस प्रकार दो महीनेमें ही मैं औरंगाबादसे पुणे आ गई। सुषमाका भी बडा दिल है। उसने इस घटनापर कभी कोई खेद या शिकायत नही की।
किसी भी संस्थामें, किसी भी समाजमें और राष्ट्रनिर्माणमें जबतक सीनियर पदपर बैठे व्यक्ति अपनेसे कनिष्ठोंके लिये सही मार्गदर्शन और सहायताकी भावना रखेंगे, तबतक वह संस्था, या समाज या राष्ट्र अच्छी परंपराओंका निर्माण करता चलेगा। जब इन मानवी रिश्तोंको संभालनेकी जिम्मेदारी स्वीकारी जाती है तभी लगनसे काम करनेवालोंकी संख्या बढती है – अन्यथा नही।
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